सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंदु बिनु नही कोई।।
सूतु एकु मणि सत सहंस जैसे, ओति पोति प्रभु सोई।।
1. एक अनेक बिआपक पूरक, जत देखउ तत सोई।।
माइआ चित्र बचित्र बिमोहित, बिरला बूझै कोई।।
2. जल तरंग अरु फेन बुदबुदा, जल ते भिंन न होई।।
इहु परपंचु पारब्रहम की लीला, बिचरत आन न होई।।
3. मिथिआ भरमु अरु सुपन मनोरथ, सति पदारथु जानिआ।।
सुक्रित मनसा गुर उपदेसी, जागत ही मनु मानिआ।।
4. कहत नामदेउ हरि की रचना, देखहु रिदै बीचारी।।
घट घट अंतरि, सरब निरंतरि, केवल एक मुरारी।।