साधो मन का मानु तिआगउ।।
काम क्रोधु संगति दुरजन की, ता ते अहिनिसि भागउ।।
1. सुखु दुखु दोनो सम करि जानै, अउरु मानु अपमाना।।
हरख सोग ते रहै अतीता, तिनि जगि ततु पछाना।।
2. उसतति निंदा दोऊ तिआगै, खोजै पदु निरबाना।।
जन नानक इहु खेलु कठिनु है, किनहूं गुरमुखि जाना।।