चलन चलन सब कोई कहत हैं, ना जाने बैकुण्ठ कहाँ है। टेक
योजन एक प्रमिति नहिं जाने, बातनि ही बैकुण्ठ बखाने । १
जब लग है बैकुण्ठ की आशा, तब लग नहिं हरिचरण निवासा । २
कहैं सुने कैसे पतियैहैं, जब लग तहाँ आप नहिं जइहैं। ३
कहैं कबीर या कहिये काहि, साधु संगति बैकुंठहि आहि। ४