छका सो थका फिर देह धारैं नहीं, करम औ कपट सब दूर कीया। १
जिन स्वाँस उस्वाँस का प्रेम प्याला पिया, नाम दरियाव तहँ पैसि जीया। २
चढ़ी मतवाल औ हुआ मन साबिता, फटिक ज्यों फेर नहिं फूटि जावै। ३
कहैं कबीर जिन बास निर्भय किया, बहुरि संसार में नाहिं आवै। ४
छका सो थका फिर देह धारैं नहीं, करम औ कपट सब दूर कीया। १
जिन स्वाँस उस्वाँस का प्रेम प्याला पिया, नाम दरियाव तहँ पैसि जीया। २
चढ़ी मतवाल औ हुआ मन साबिता, फटिक ज्यों फेर नहिं फूटि जावै। ३
कहैं कबीर जिन बास निर्भय किया, बहुरि संसार में नाहिं आवै। ४