जा घर कथा नहिं गुरु कीर्तन, सन्त नहीं मिजमाना ।
ता घर जमरा डेरा दीन्हा, साँझ पड़े समसाना । टेक
मेरि मेरि करता मरि गयो मूरख, छूटा न मान गुमाना ।
साधु संत की सेवा न कीन्हीं, किस बिधि हो कल्याना । १

फूल्यो फूल्यो काहे फिरत है, क्या दिखलावत बाना ।
एक पलक में फना होयगा, जैसा पतंग उड़ाना । २

ज्ञान गरीबी प्रेम भक्ति लौ , सत्य नाम निशाना ।
बिरह बैराग गुरु गम से जागे , ता घर कोटि कल्याना । ३

कालहि डंका देइ रह्यो है, क्या बूढ़ा क्या ज्वाना ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, छोड़ चलो अभिमाना । ४