जग में सोइ बैराग कहावे। टेक
आसन मारि गगन में बैठे, दुर्मति दूर बहावै। १

भूख प्यास औ निद्रा साधै, जियते तनहिं जरावै। २

भौसागर के भरम मिटावै, चौरासी जिति आवै। ३

कहैं कबीर सुनो भाई साधो, भाव भक्ति मन लावै। ४