का नर सोवत मोह निशा में, जागत नाहिं कूच नियराना। टेक
पहिला नगारा श्वेत केश भै, दूजै बैन सुनत नहिं काना।
तीजै नैन देखि नहिं सूझे, चौथे आइ गिरा परवाना। १
मातु पिता कहना नहिं मानै, गुरु जन से कीन्हा अभिमाना।
धर्म की नाव चढ़न नहिं जानै, अब यमराज ने भेद बखाना। २
होत पुकार नगर कसबे में, रैयत लोग सबै अकुलाना।
चलने की जब होत तैयारी, अंत भवन बिच प्राण लुकाना। ३
प्रेम नगर में हाट लगत है, जहँ रंगरेजवा है सतवाना।
कहैं कबीर कोइ काम न अइहैं, माटिक देह माटी मिलि जाना। ४