कारनि कौन सँवारे देहा, यहु तनि जरि बरि ह्वै है षेहा। १ 

चोवा  चंदन चरचत अंगा, सो तन जरत काठ  के संगा। २ 

बहुत जतन करि देह मुटवाई, अगिन दहै के जंबुक खाई। ३ 

जा सिरि रचि रचि बाँधत पागा, ता सिरि चंच सँवारत कागा। ४ 

कहि  कबीर  तब  झूठा  भाई, केवल  राम  रहौ  लौ लाई। ५