कहन को साहु अरु वृत्ति है चोर की, साहुजी कहत नहिं सरम आवै। १

झूठ ही कहत अरु झूठ ही रहत है, रैन दिन झूठ में जन्म जावै।२ 

मान के आसरे फूलि के बैठिया, इन्द्रियां स्वाद मन माहिं भावै। ३ 

कहैं  कबीर  ते  साहु  के बोलिये, जम  के  घेसले  खूब खावै। ४