कैसे समझाऊँ मैं न माने मेरी बात रे। टेक 

यह मन मूढ़ मधुर अमृत तजि, गटकि गटकि कटुविष फल खात रे। १

एक पल भी थिरत न कबहुँ, सटकि-सटकि भागे चहुँ दिश जात रे। २ 

जो मैं रोकि तनिक कहूँ राखूँ, पटकि-पटकि अकुलात रे। ३ 

कहैं कबीर सन्त मेटत हैं, हटकि-हटकि याके सब उतपात रे। ४