काया सराय में जीव मुसाफिर, काह करत उन्माद रे।
रैन बसेरा कर ले डेरा, चला सबेरे लाद रे। टेक
तन के चोला खरा अमोला, लगा दाग पर दाग रे।
दो दिन की जिन्दगानी में क्या, जरे जगत की आग रे। १
क्रोध केंचुली उठी चित्त में, भये मनुष ते नाग रे।
सूझत नहिं आतम सुख सागर, बिना प्रेम बैराग रे। २
सरवन शब्द बुझि सतगुरु से, पूरण प्रगटे भाग रे।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, पाया अचल सुहाग रे। ३