खलक सब रैन का सपना, समझ मन कोई नहिं अपना। टेक
कठिन है मोह की धारा, बहा सब जात संसारा।
घड़ा जस नीर का फूटा, पत्र ज्यों द्वार से टूटा। १
ऐसी नर जात ज़िन्दगानी, अजहुँ तो चेत अभिमानी।
भुलो मति देखि तनु गोरा, जगत में जीवना थोरा| २
सजन परिवार सुत दारा, सभी इक रोज हैं न्यारा।
निकस जब प्राण जावेगा, नहीं कोई काम आवेगा। ३
सदा जिन जानि यह देही, लगा निज रूप से नेही।
कटे यम जाल की फाँसी, कहै कबीर अविनाशी। ४