नहिं मानै मूढ़ गँवार, मैं कैसे कहूँ समझाय । टेक
झूठे को विश्वास करत है, साँचे नहिं पतियाय । १
आतम त्यागि अनातम पूजत, मूरख शीश नवाय । २
सज्जन संग विमल गंगाजल, तेहि तज तीरथ जाय । ३
अपनो हित अनहित नहिं सूझे, रही अविद्या छाय । ४
कहैं कबीर प्रत्यक्ष न माने, ताको कौन उपाय । ५
Nahin maanai moodh ganwaar, main kaise kahun samjhaye | tek
Jhoothe ko vishwas karat hai, saanche nahin patiyaye | 1
Aatam tyagi anatam poojat, moorakh sheesh navaye | 2
Sajjan sang vimal gangajal, tehi taj teerath jaaye | 3
Apno hit anhit nahin soojhe, rahi avidya chhaye | 4
Kahain kabir pratyaksh na maane, taako kaun upaye | 5