नर तू पार कहँ जैहो ।
आगे पन्थ पन्थि ना कोई, कूच मुकाम न पैहो । टेक
नीर नाह नहिं खेवट किरवा, ना गुण खेवनहारा ।
धरति अकाश कल्प कछु नाहीं, ना कुछ वार न पारा । १
यह तो आपी आपा कहिये, शून्य शोध न पैहो ।
विलयमान होय जाहु छिनक में, याहु ठौर बिनु होइ हो । २
बारम्बार विचार शोधि मन, अपने माहि समैहो ।
कहैं कबीर मुक्ति नहिं आगे, ज्यों का त्यों ठहरैहो । ३
Nar tu paar kahn jeiho
Aage panth panthi na koi, kooch mukaam na peiho | tek
Neer naah nahin khevat kirva, na gun khevanhaara
Dharti akaash kalp kachhu nahin, na kucch vaar na paara | 1
Yeh to aapi aapa kahiye, shoonya shodh na paiho
Vilaymaan hoye jaahu chhinak main, yaahu thaur binu hoi ho | 2
Barambaar vichaar shodhi mann, apne maahi samaiho
Kahain kabir mukti nahin aage, jyon ka tyon theheraiho | 3