तन राखन हार कोई नाहिं , सोच-विचार देखो मन माहिं । टेक
जोरि कुटुम्ब आपन करि मान्यो, मूँड़ ठोकि ले बाहर जारयो ।
दगाबाज लूटे अरु रोवे, जारि गाड़ि पुर खोजहिं सोवै ।
कहत कबीर सुनो रे भाई, हरि बिन तेरो कौन सहाई ।
तन राखन हार कोई नाहिं , सोच-विचार देखो मन माहिं । टेक
जोरि कुटुम्ब आपन करि मान्यो, मूँड़ ठोकि ले बाहर जारयो ।
दगाबाज लूटे अरु रोवे, जारि गाड़ि पुर खोजहिं सोवै ।
कहत कबीर सुनो रे भाई, हरि बिन तेरो कौन सहाई ।