हरि हरि हरि नित नाम सुमरणा
भव सागरजल पार उतरना ॥ टेक ॥
बिन हरि सुमरे कबहुं न उबरे पुन पुन पुन जग जीवन मरणा ॥ १ ॥
जो जन ध्यावे परपद पावे सुन्दर बदन मनोहर चरणा ॥ २ ॥
पल में सारे पाप निवारे सकल मनोरथ पूरण करणा ॥ ३ ॥
ब्रम्हानंद दया के सागर भक्तजनों के सब दुख हरणा ॥ ४ ॥
Hari hari hari nit naam sumarṇaa
bhav saagar jal paar utarnaa ॥
bin hari sumre kabahun na ubre pun pun pun jag jeevan marṇaa ॥ 1 ॥
jo jan dhyaave parpad paave sundar badan manohar charaṇaa ॥ 2 ॥
pal mein saare paap nivaare sakal manorath pooraṇ karṇaa ॥ 3 ॥
bramhaanand dayaa ke saagar bhakt janon ke sab dukh harṇaa ॥ 4 ॥