मनकी बात न मानो साधो मनकी बात न मानो रे ॥ टेक ॥
मन चंचल मर्कट सम निशदिन रहे न एक ठिकानो रे
चिंतन करत सदा विषयन को माया भरम भुलानो रे ॥ १
तन धन सुत दारा के मांही रात दिवस लिपटानो रे
मोहमयी मदिरा को पीकर फिरत सदा मस्तानो रे ॥ २
लाभ हानि नहि समझे मूरख करे जो मन को मानो रे
सो जन कबहुं मोक्ष नहि पावे जन्म मरण भटकानो रे ॥ ३
रोक जतनसें मन विषयन सें हरिचरण में आनो रे
ब्रम्हानंद कटें भवबंधन यह निश्चय कर जानो रे ॥ ४