मेरी सुरत गगन में जाय रही
एजी जाय रही अरु धाय रही ॥ टेक ॥
त्रिकुटी महल में चड़कर देखा जग मग जोत जगाय रही ॥
अमृत बरसे बादल गरजे बिजली चमक मन भाय रही ॥
दसवें महल में सेज पिया की चुन चुन फूल बिछाय रही ॥
ब्रम्हानंद देह सुध बिसरी सहज स्वरुप समाय रही ॥
Meri surt gagan mein jaay rhi
Eji jaay rhi aru dhaay rhi ॥ Tek ॥
Trikuti maahl mein chadkr dekhaa jag mag jot jgaaay rhi ॥
Amrit barse baadl garje bijli chmk man bhaay rhi ॥
Dasven mhl men sej piyaa ki chun chun ful bichhaay rhi ॥
Bramhaannd deh sudh bisri shj svrup smaay rhi ॥