पंडित इसु मन का करहु बीचारु।।
अवरु कि बहुता पड़हि, उठावहि भारु।।

इहु मनु गिरही कि इहु मनु उदासी।।
कि इहु मनु अवरनु सदा अविनासी।।
कि इहु मनु चंचलु, कि इहु मनु बैरागी।।
इसु मन कउ ममता, किथहु लागी।।

माइआ ममता करतै लाई।। एहु हुकमु करि स्रिसटि उपाई।।
गुर परसादी बूझहु भाई।। सदा रहहु हरि की सरणाई।।

सो पंडितु, जो तिहां गुणा की पंड उतारै।। अनदिनु एको नामु वखाणै।।
सतिगुर की ओहु दीखिआ लेइ।। सतिगुर आगै सीसु धरेइ।।
सदा अलगु रहै निरबाणु।। सो पंडितु दरगह परवाणु।।

सभनां महि एको एकु वखाणै।। जां एको वेखै तां एको जाणै।।
जा कउ बखसे मेले सोइ।। ऐथै ओथै सदा सुखु होइ।।

कहत नानकु कवन बिधि करे किआ कोइ।।
सोई मुकति जा कउ किरपा होइ।।

अनदिनु हरि गुण गावै सोइ।। सासत्र बेद की फिरि कूक न होइ।।