अवधू अमल करै सो पावै ।
जौ लग अमल असर न होवै, तौ लग प्रेम न आवै । टेक
बिनु खाये फल स्वाद बखानै, कहत ना सोभा पावै ।
बिनु गुरु ग्यान गाँठ के हीना, निज की वस्तु भुलावै ॥ १
आँधर हाथ लिये वर दीपक, कर परकास दिखावै ।
औरन आगे करे चांदनी, आप अंधेरे धावै ॥ २
आँधर आप आँधर दस गोहने, जग में गुरु कहावै ।
मूल महल की खबर न जानै, औरन को भरमावै ॥ ३
लै अमृत मूरख रेंड सींचै, कल्पवृक्ष बिसरावै ।
ले ले बीज ऊषर में बोवै, पाहन पानी नावै ॥ ४
लागी आग जरे घर आपन, मूरख घूर बुझावै ।
पढ़ा गुणा जो पंडित भूला, वाको को समझावै ।। ५
कहैं कबीर सुनो हो गोरख, यह संतन भावै ।
है कोड़ सूर पूर जग माही, जो यह पद अर्थावै ॥ ६
Avadhoo amal karai so pavei .
Jau lag amal asar na hovei, tau lag prem na aavei . Tek
Binu khaaye fal svaad bakhaanei, kahat na sobha pavei .
Binu guru gyan gaanth ke hina, nij ki vastu bhulavei ॥ 1
Aandhar haath liye var deepak, kar parakaas dikhaavei .
Auran aage kare chandni, aap andhere dhavei ॥ 2
Aandhar aap aandhar das gohane, jag mein guru kahaavei .
Mool mahal kee khabar na jaanei, auran ko bharamavei ॥ 3
Lei amrit murakh reind sinchei, kalpaveiksh bisaravei .
Le le beej Ushar mein bovai, paahan panie navei ॥ 4
Lagi aag jare ghar aapan, murakh ghur bujhavei .
Padha gunaa jo pandit bhula, vaako ko samajhavei 5
Kahein kabir suno ho gorakh, yah santan bhaavei .
Hai kod soor poor jag mahi, jo yah pad arthaavei ॥ 6