अवधू! युक्ति विचारे सोई जोगी।
हंसा होय नाम को पीवै, कदे ना होव रोगी। ।

1. मूल कमल में लहर लपेटी, षट दल माहिं समानी।
दोऊ देव का दरशन देखा, आग करो पयानी। ।

2. अष्ट कमल दल आसन कीन्हा, पैठत पवन गुंजार।
सरल स्वभाव चलत है संतो, फिरि-फिरि लेत सम्भार। ।

3. इंगला पिंगला और सुखमना, काया सों लिपटानी।
इनसों पिण्ड ब्रह्मण्डे दरस, काया मध्य निशानी। ।

4. षोडश ऊंचे द्वादश नीचे, जहाँ समाधि लगाई।
नव नारी और बहोतर कोठा, सबमें फिरि-फिरि आई। ।

5. ओ घट घाट खोज सबि देखा, सपनहिं आकाशे पानी।
कोटि जीव जम दवारा छूटे, मुरछि ना जावो ज्ञानी। ।

6. राजा रंक देऊ और राणा, धीरज धरना कोई,
अमरित पीवै तबहिं फल निपजे, ऐसे निरभय होई। ।

7. छहों चक्र चढ़ि ऊपर आया, देखा सबि विसतारा।
धूप ना छांव दिवस नहिं रजनी, आप अखंड धारा। ।

8. गगन मण्डल महिं आसन कीन्हा, तहां अगम दरवाजा।
कहैं कबीर जाहिं सतगुरु मिलया, सो सुनै अगम के गाजा। ।