ग्यान का धनुष ले मुक्ति मैदान में, सीलका बान ले मतंग मारा।
सबद का घाव सो साँच उर में धसा, काम दल लोभ हंकार मारा । ।
1. क्रोध अरु मोह दहि चोर पाँचों गये, जोति परकास देखि उजियारा।
सुन्न के महल में रमता कबीर है, सबद अनहद से काल टारा। ।
2. मोह के माहि सब जीव मस्तान हैं, खान और पान सब मगन हूवा।
नारि सो पुरुष और पुरुष सो नारि है, अरस ओ परस मिलि नाधि जूवा। ।
3. नारि को रैन दिन ध्यान है पुरुष का, पुरुष को ध्यान है नारि केरा।
कहैं कबीर सब जीव यों उरझा, कहो क्यों छोड़ि है गर्भ फेरा। ।