काम की कोथली मूल में जलि गई, राम की कोथली रहे प्यारे। १
राम विश्राम तहाँ काम कहाँ पाइये, काम विश्राम तहाँ राम न्यारे। २
दिवस अरु रैन कहूँ एक ठौर ना रहै, ग्यान अग्यान नहि एक होई। ३
कहैं कबीर यह भेद जाने बिना, जीव विश्राम क्यों लहै कोई। ४
काम की कोथली मूल में जलि गई, राम की कोथली रहे प्यारे। १
राम विश्राम तहाँ काम कहाँ पाइये, काम विश्राम तहाँ राम न्यारे। २
दिवस अरु रैन कहूँ एक ठौर ना रहै, ग्यान अग्यान नहि एक होई। ३
कहैं कबीर यह भेद जाने बिना, जीव विश्राम क्यों लहै कोई। ४