कर्म और धर्म संसार सब करतु है, पीव की कोइ संत जानै। १
सुरत अौ निरत मन पवन को पकर करि, गंग और जमुन के घाट आनै। २
पाँच को नाथ करि साथ सौहूँ लिया, अधर दरियाव का सुक्ख मानै। ३
कहैं कबीर सोइ संत निर्भय घरा, जन्म और मरन का भर्म भानै। ४