तेरे घट में राम तू काहे भटके । टेक
जैसे अग्नि बसत पथरी में, चमकत नहिं बिनु पटके । १

जैसे माखन रहत दूध में, निकसत नहिं बिनु झटके । २

जैसे मधुर रस बसत ऊख में, निकसत नहीं बिनु कटके । ३

कहैं कबीर सुनो भाई साधो, हरि न मिले बिनु अटके । ४