अंध रे अंध संसार सब धुंध है काल के फंद की खबर नाहीं।  करत उन्माद विष...

अनप्रापत बस्तु को कहा तजै प्रापत तजै सो त्यागी है।  असील तुरंग को कहा फेरे अफ़तर...

क्रिया कर्म आचार मैं छाँड़ा छाँड़ा तीर्थ नहाना॥ सारी दुनिया भई सयानी मैं ही एक दीवाना॥...

जब से दया भई सतगुरु की अभय निशान बजायो॥ काम क्रोध की गागरि फूटी ममता मोह...

चेतत चेतत उमर बीत गई पंथी चकित भये रहिया भुलानी॥ हड़वा झुराय गए चमवा सुखाय गये...

दुःख न दर्द काल नहि व्यापे आनंद मंगल गाया है॥ मूल बीज बिनु वृक्ष बिराजै सतगुर...

ज्ञान कुदार ले बंजर गोड़े नाम को बीज बोवावे॥ सुरत सरावन नय कर फेरे ढेला रहन...

जब लग मोर तोर करि लीन्हा। भै भै जनमि जनमि दुःख दीना॥ अगम निगम एक करि...

जो काहू की भली न आवै बुरी काहे को कहिये। जो कोई संत मिले बड़ भागी...

घट के भीतर बहुत अंधेरा ब्रह्म अग्नि उजियारु रे। जगमग जोत निहारु मंदिर में तन मन...

करत उन्माद विष स्वाद संसार का मगन मस्तान है तासु माहीं। नैन मद अंध अरु बैन...

असील तुरंग को कहा फेरे अफ़तर फेरे सो बागी है। जग भव का गावना क्या गावै...