मन तू क्यों भूला रे भाई तेरी सुधबुध कहाँ हेराई । टेक जैसे पंछी रैन बसेरा...
मन तुम भजन करो जग आइ के । टेक दुर्लभ साज मुक्ति की देहि भूले माया...
मन को चीन्हो रे नर भाई । आतम छोड़ि के पाथर पूजे बहा सकल जग जाई...
मत बाँधो गठरिया अपयश कै । टेक धरम छोड़ि अधरम को धायो नैया डुबायो जनम भर...
भेष दरियाव में हंस भी होत है भेष दरियाव में बग्ग होई । १ भेष दरियाव...
भेष को देखि कोई भूलो नहीं भेष पहिरे कोई सिद्ध नाहीं । काम और क्रोध मद...
भूले मन समुझ के लाद लदनिया । टेक थोड़ा लाद बहुत मत लादे टुट जाये गरदनिया...
भूला लोग कहैं घर मेरा । जा घर में तू भूला डोले सो घर नाहीं तेरा...
भूला मन राम बिना कस तरिहो । टेक माटी लाय के चौरा बाँधा ता पर दूब...
भाषा तो संतन ने कहा संसकिर्त ऋषिन की बानी है जी । १ ज्यों काली पीली...
भाग्य भले जा घर संत पधारे कर सुमिरन भवसागर तारे । टेक आया संतो तो आदर...
भागो मत जारे तेरी काया में गुलजारे । टेक करनी क्यारी बोय के रहनी रखु रखवारे...