आना आना रे मोहन मेरी गलियां ॥ टेक ॥ घिस घिस चन्दन लेप लगावूं धोवुं चरनन...

पिया चालो नगरिया हमारी रे ॥ टेक ॥ तुमबिन हारसिंगार न भावे सुने महल अटारी रे...

मत सोना मुसाफिर नींद भरी ॥ टेक ॥ तुम परदेसी भूल पडे हो चोरन की नगरी...

मुझे दीजे दरस गिरधारी रे ॥ टेक ॥ शीश किरीट गले बनमाला कुंडल की छवि न्यारी...

मुझे लीजिये रे ईश्वर तेरी शरणा ॥ टेक ॥ जन्म जन्म को दास तुमारो दीनजानकर केर...

प्रभु सुनले बिनतिया हमारी रे ॥ टेक ॥ भवसागर में डूब रहा हुं लीजिये बेग उबारी...

प्रभु तेरे चरण कमल बलिहार ॥ टेक ॥ तुम पितुमात विश्व विधाता सब जावन हितकार ॥...

मैं तो प्रभु तुझ चरनन का दास ॥ टेक ॥ दीनदयाल दया के सागर सकल भुवन...

मेरे मना अब तो सुमर हरिनाम ॥ टेक ॥ चौरासी लख जीव जून में नहि पायो...

मेरेमना अब तो समझकर चाल ॥ टेक ॥ बाल्य गयो जोबन पुनि बीतो श्वेत भये सब...

मुसाफिर क्या सोवे अब जाग॥ टेक ॥ इन बिरछन की नहि छाया देख भुलाया बाग़ ॥...

भजन बिन भवजल कौन तरे ॥ टेक ॥ काम क्रोध मद ग्राह बसत है मार्ग में...