भजन बिन बिरथा जनम गयो ॥ टेक ॥ बालपणो सब खेल गमायो जोबन काम बह्यो ॥...

तुमे है हरिशरण पड़े की लाज ॥ टेक ॥ मैं गुणहीन मलिन सदामति कैसे बने अब...

सुहावे सखी मोहनकी मोहे बेन ॥ टेक ॥ जमुनातट पर बन कुंजन में शाम चरावे धेन...

मिलादो सखी शामसुंदर मोहे आज ॥ टेक ॥ रातदिवस मोहे चैन न आवे भूल गये सब...

मेरा पिया मुझे दिखलादो रे कोई आनके आज मिलादो रे ॥ टेक ॥ मैं बिहरण नित...

दर्शन बिन जियरा तरसे रे मेरे नैन धार जल बरसे रे ॥ टेक ॥ मैं पापन...

हरिदर्शन की मैं प्यासी रे मेरी सुनिये अरज अविनाशी रे ॥ टेक ॥ निर्गुण से मोहे...

हरिभजन बिना सुखनाही रे नर क्यों बिरथा भटकाई रे ॥ टेक ॥ काशी गया द्वारका जावे...

गुरु चरणकमल बलिहारी रे मेरे मनकी दुविधा टारी रे ॥ टेक ॥ भवसागर में नीर अपारा...

हरिरस भरी बैन बजाई रे मेरे तन की सुध बिसराई रे ॥ टेक ॥ सुनकर बंसी...

सखी सुन हाल हमारा शामसुंदर मोहे लगे पियारा खानपान सुध भूल गई घरकाज बिसारारे ॥ टेक...

मुझे दे दर्शन गिरिधारी रे तेरी सांवरी सूरत पे वारीरे ॥ टेक ॥ जमुनातट हरि धेनु...