अवधू भजन भेद है न्यारा । टेक
क्या गाये क्या लिखि बताये, क्या भरमे संसारा ।
क्या संध्या तरपन के कीन्हैं, जो नहिं तत्व विचारा ॥ १
मूड़ मुंडाये सिर जटा रखाये, क्या तन लाये छारा ।
क्या पूजा पाहन की कीन्हैं, क्या फल किये अहारा ॥ २
बिन परचे साहिब हो बैठे, विषय करै व्यापारा ।
ग्यान ध्यान मरम न जाने, वादे करे हंकारा ॥ ३
अगम अथाह महा अति गहिरा, बीज न खेत निवारा ।
महा सो ध्यान मगन हुवै बैठे, कपट करम की छारा ॥ ४
जिनके सदा अहार अंतर में, केवल तत्त विचारा ।
कहैं कबीर सुनो हो गोरख, तारौं सहित परिवारा ॥ ५
Avadhoo bhajan bhed hai nyara . Tek
Kya gaaye kya likhi bataaye, kya bharame sansaraa .
Kya sandhya tarapan ke kinhein, jo nahin tatv vichara ॥ 1
Mood mundaaye sir jataa rakhaaye, kya tan laaye chhaaraa .
Kya pooja paahan kee keenhein, kya phal kiye ahaaraa ॥ 2
Bin parache saahib ho baithe, vishay karai vyapara .
Gyan dhyan maram na jane, vaade kare hankara ॥ 3
Agam athaah mahaa ati gahiraa, beej na khet nivara .
Mahaa so dhyan magan huvei baithe, kapat karam ki chhara ॥ 4
Jinake sada ahaar antar mein, keval tatt vichara .
Kahein kabir suno ho gorakh, taaraun sahit parivara ॥ 5