जो तू भक्ति करन को चाहत हो, निन्दा से नहिं डरिहो जी। १
पाँच छड़ी कोई सिर पर मारे, सहत बने तो सहिये जी। २
मूरख आगे ग्यान न कथियो, मौनी होके रहिओ जी । ३
परतिरिया से नेह न करिहो, देखत दूर से डरिहो जी । ४
यह संसार विषय के काँटा, निरखि निरखि पगु धरिहो जी । ५
कहैं कबीर यह निर्गुन बानी, महरम होके बुझिहो जी । ६