Bhakti
आज सखी कुंजन में रास रचत है हरी ॥ टेक ॥ जमुनासरित निर्मल नीर हरित घास...
राम नाम सुमर ले उमर बीत जा रही ॥ टेक ॥ अंजलि जल न थिर रहाय...
आज मुझे आय़ के नाथ दरस दीजिये ॥ टेक ॥ शीशमुकुट तिलकभाल श्रवणकुंडल दृग विशाल कंठ...
आज मेरी बेनती दीन बंधु मान ले ॥ टेक ॥ भाई बंधु मीत नार चार दिवस...
आज मेरी बेनती दीनबंधु सुन ज़रा ॥ टेक ॥ सकल जगत के अधार निर्गुण नित निर्विकार...
आज मेरी लाज हरि आयके बचाइये ॥ टेक ॥ कौरवों की सभा बीच जुड़े सबी लोक...
देख सखी कृष्णचंद कि छवि सुहावनी ॥ टेक ॥ सिर पे मुकुट अलक भाल श्रवणकुंडल दृगरसाल...
वृंदावन कुंज भवन नाचत गिरधारी ॥ टेक ॥ धरधरधर मुरली अधर भरभर स्वर मधुरमधुर कर कर...
हेरी सखी आज मुझे शाम से मिलाय दे ॥ टेक ॥ मोरमुकुट शीश धरे मकर कुंडल...
आज सखी शाम सुन्दर बंसिया बजावे ॥ टेक ॥ मोरमुकुट सिर चढ़ाय पग में नूपुर सुहाय...
राम सुमर राम सुमर राम सुमर भाई ॥ टेक ॥ रजा रानी वजीर पंडित ज्ञानी सुधीर...
भजरे मन राम चरण निश दिन सुखदाई ॥ टेक ॥ नरतन यह बार बार जग में...