ऊधो तुझे ज्ञानसार समझाऊं तेरे मन का भरम मिटाऊं मैं निरगुन व्यापक सब जग में पूरण...

हरि कैसे बलिघर याचन आये सब जगत के नाथ कहाये बलिराजा रणधीर महाबल इन्द्रादिक डर पाये...

हरि तुम भक्तन के हितकारी अब राखिये लाज ह्मारी प्रहलाद भक्त को हिरणकसप ने कष्ट दिया...

हरि तेरे चरणन की मैं दासी मेरी काटो जनमकेरी फासी टेक ना जाऊं मथुरा ना गोकुल...

नाथ कैसे द्रुपदीके चीर बढ़ाए जाको देख सभी विस्माये टेक कौरव पांडव मिल आपस में जूबा...

नाथ कैसे नरसिंघ रूप बनाया जासे भक्त प्रहलाद बचाया टेक न कोई तुमारा पिता कहावे न...

राम तेरी रचना अचरज भारी जाको वर्णन कर सब हारी टेक जल की बूँद से देह...

आज मेरी सुनिये अरज गिरधारी मैं तो आया हूँ शरण तुमारी टेक बालापन सब खेल गवायो...

नाथ तेरी मायाजाल बिछाया जामे सब जग फिरत भुलाया टेक कर निवास नौमास गर्भ में फिर...

आज सखी सपने में आये नारायण बैकुंठ बिलासी टेक मदन अनेक वदन की शोभा रवि शशि...

आज सखी सतगुरु घर आये मेरे मन आनंद गयो री टेक दर्शन से सब पाप बिनाशे...

भाग्य बड़े सतगुरु मैं पायो मन की दुविधा दूर नसाई टेक बाहिर ढूंड फिरा मैं जिसको...