दीनानाथ रमापति मैं हुं शरण तुमरी जी ॥ टेक ॥ काम क्रोध मद लोभ लुटेरे रखिये...
नर क्या सुख सोवे संग लली तेरे सिरपर ठाडो काल बलि ॥ टेक ॥ पलपल छिनछिन...
सुन सखी वर्षा ऋतु मन भाई कामकाज सब छोड जगत के निशदनी सुरत जमाई ॥ टेक...
सुन सखी अब वर्षा दिन आये । पूरब पवन चले निस बासर घुमट घुमट घन छाये...
सुनो सखी अब वर्षा ऋतु आई ॥ टेक ॥ सुंदर मेघ गगन पर छाये शीतल पवन...
सुनो सखी री अनहद नाद बजे ॥ टेक ॥ गगन महल में नौबत बाजे साज अनेक...
सुनो सखी री आज स्वप्न की बात ॥ टेक ॥ स्वप्ने में हरिदर्शन दीना तेजपुंज मय...
मनुवा रे तज विषयन को संग ॥ टेक ॥ क्षण भंगुर सब बस्तु जगत मैं जिम...
मनुवा रे रामभजन जगसार ॥ टेक ॥ बडे बडे प्रिथवी के राजा छोड गये दरबार ॥...
मनुवा रे हरिगुण गान करो ॥ टेक ॥ कलि केवल हरिनाम परमपद मूरख क्यों बिसरो ॥...
चालो सखी री संतन संग करें ॥ टेक ॥ सतसंगत है सार जगत में क्यों अवसर...
कैसे सखी री मनुवा धीर धरे ॥ टेक ॥ जिनके संग विविध सुख लीने सो हमसें...