मुझे क्या काम दुनिया से विरह में मैं दीवाना हुं टेक प्यारे की खोज में निशदिन...
बिना सतसंग के मेरे नहीं दिल को करारी है टेक जगत के बीच में आया मनुज...
पिलादे प्रेम का प्याला प्रभु दर्शन पियासी हुँ छोड़कर भोग दुनिया के योग के पंथ में...
दिला दे भीख दर्शन की प्रभु तेरा भिखारी हुँ टेक चलकर दूर देशन से तेरे दरबार...
दिलादे नाथ अब दर्शन खड़ा हूं द्वार पे आकर टेक सुना जग बीच में तेरा जबी...
करो तुम प्रेम ईश्वर से अगर तू मोक्ष चाहता है टेक रचा उसने जगत सारा करे...
जतन कर आपना प्यारे कर्म की आश मत कीजे टेक मनुजकी देह गुणकारी अकल पशुओं से...
करो हरि का भजन प्यारे उमरिया बात जाती है टेक पूर्व शुभ कर्म कर आया मनुज...
बिना हरिनाम के सुमरे गति नहीं होयगी तेरी लगाले भस्म इस तनमें करो तप जाके वा...
मिलादो शाम से ऊधो तेरा गुण हम भी गावेंगी मुकुट सिर मोर पंखन का मकर कुंडल...
ऊधो वो साँवरी सूरत ह्मारे नैन का तारा टेक अगर हम जानते मोहन चले जायेंगे गोकुल...
ऊधो वो सांवरी सूरत नहीँ हमको दिखाते हो टेक जगत हित कारण हरि ने धरी है...