मान रे मन मान मूरख बात मेरी मान रे ॥ टेक ॥ जैसे बिजली बीच बादल...

जाग रे नर जाग प्यारे अब तो गाफिल जाग रे ॥ टेक ॥ स्वपन जैसी जान...

गाय रे नर गाय प्यारे अब तो हरिगुण गायरे ॥ टेक ॥ बालापण जोबन गया फिर...

जाग मुसाफर क्या सुख सोवे आखिर तझको जाना है रे ॥ टेक ॥ इस सराय में...

काहे शोच करे नर मन में वो तेरा रखवारा है रे ॥ टेक ॥ गर्भवास से...

जो जन ध्यान धरे निर्गुण का सो ईश्वर का दर्शन पावे ॥ टेक ॥ जाय एकांत...

जो जन हरि का ध्यान लगावे सो भवसागर पार तरे रे ॥ टेक ॥ हिरदे बीच...

अहो प्रभु काल बडो बलकारी जांको भोजन है नर नारी ॥ टेक ॥ ब्रम्हा रूद्र इंद्रगण...

रे मनुवा क्यों जग में लिपटायो तेरो कोई नहीं है सहायो ॥ टेक ॥ एग संसार...

प्रभु तेरी महिमा परम अपार जांको मिलत नहीं कोई पारा ॥ टेक ॥ सकल जगत को...

प्रभु तेरी महिमा कौन बखाने जाको ब्रम्हादिक नहिं जाने ॥ टेक ॥ तुं सर्वज्ञ चराचर पूरण...

प्रभु तेरी महिमा किस बिध गावूं तेरो अंत कहीं नहीं पाऊँ ॥ टेक ॥ अलख निरंजन...