तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥ भवसागर में बही जात हौं काढ़ो तो थारी मरजी। इण संसार...

थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ मैं हाजिरनाजिर कद की खड़ी॥ साजणियां दुसमण होय बैठ्या सबने लगूं...

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं। निराकारओंकारमूलं तुरीयं गिराग्यान गोतीतमीशं...

हरिचरणकमल चित लावना रे फिर मानुष जनम नहि आवना रे ॥ टेक ॥ मैथुन नींद खान...

शरण पडे कि लाज तुम राखो भगवाना ॥ टेक ॥ जप तप योग यज्ञ नहि कीने...

पिया मिलनके काज आज जोगन बन जावुंगी ॥ टेक ॥ हारसिंगार छोडकर सारे अंग बिभूत रमावुंगी...

दीनानाथ दयाल सुने मैं भक्तन के हितकारी ॥ टेक ॥ हिरणकशिप ने बांध भक्त को चाबुक...

देखो देखो री लंगर मेरो रोकत डगर । मेरी बंयरा पकर तलपट की गगर । मैं...

मेरी सुरत गगन में जाय रही एजी जाय रही अरु धाय रही ॥ टेक ॥ त्रिकुटी...

प्रभु तुम सब जग सर्जनहारे सकल शक्तिमय पिता हमारे ॥ टेक ॥ भूमि पर्वत नदियां सागर...

प्रभु कर सब दुःख दूऱ ह्मारे शरण पडे हम दास तुमारे ॥ टेक ॥ सकल जगत...

तुं तो उडता पंछी यार तेरा कौन करे इतबार ॥ टेक ॥ नौ खिडकी का पिंजरा...