Bhakti
मत सोना मुसाफिर नींद भरी ॥ टेक ॥ तुम परदेसी भूल पडे हो चोरन की नगरी...
मुझे दीजे दरस गिरधारी रे ॥ टेक ॥ शीश किरीट गले बनमाला कुंडल की छवि न्यारी...
मुझे लीजिये रे ईश्वर तेरी शरणा ॥ टेक ॥ जन्म जन्म को दास तुमारो दीनजानकर केर...
प्रभु सुनले बिनतिया हमारी रे ॥ टेक ॥ भवसागर में डूब रहा हुं लीजिये बेग उबारी...
प्रभु तेरे चरण कमल बलिहार ॥ टेक ॥ तुम पितुमात विश्व विधाता सब जावन हितकार ॥...
मैं तो प्रभु तुझ चरनन का दास ॥ टेक ॥ दीनदयाल दया के सागर सकल भुवन...
मेरे मना अब तो सुमर हरिनाम ॥ टेक ॥ चौरासी लख जीव जून में नहि पायो...
मेरेमना अब तो समझकर चाल ॥ टेक ॥ बाल्य गयो जोबन पुनि बीतो श्वेत भये सब...
मुसाफिर क्या सोवे अब जाग॥ टेक ॥ इन बिरछन की नहि छाया देख भुलाया बाग़ ॥...
भजन बिन भवजल कौन तरे ॥ टेक ॥ काम क्रोध मद ग्राह बसत है मार्ग में...
भजन बिन बिरथा जनम गयो ॥ टेक ॥ बालपणो सब खेल गमायो जोबन काम बह्यो ॥...
तुमे है हरिशरण पड़े की लाज ॥ टेक ॥ मैं गुणहीन मलिन सदामति कैसे बने अब...