Bhakti
जोसीड़ा ने लाख बधाई रे अब घर आये स्याम॥ आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै...
बड़े घर ताली लागी रे म्हारां मन री उणारथ भागी रे॥ छालरिये म्हारो चित नहीं रे...
या मोहन के रूप लुभानी। सुंदर बदन कमलदल लोचन बांकी चितवन मंद मुसकानी॥ जमना के नीरे...
स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो। या भवसागर मंझधार में थे ही निभावण हो॥ म्हाने औगण घणा...
तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥ भवसागर में बही जात हौं काढ़ो तो थारी मरजी। इण संसार...
थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ मैं हाजिरनाजिर कद की खड़ी॥ साजणियां दुसमण होय बैठ्या सबने लगूं...
मन तुम भजन करो जग आइ के । टेक दुर्लभ साज मुक्ति की देहि भूले माया...
मन को चीन्हो रे नर भाई । आतम छोड़ि के पाथर पूजे बहा सकल जग जाई...
भाई रे दुइ जगदीश कहाँ ते आया कहु कौने बौराया । अल्लाह राम करीमा केशव हरि...
भरम में भूल रहा संसार । टेक साँच वस्तु कैसे के पावै माने नहिं इतबार ।...
भजु मन राम उमरि रहि थोड़ी । टेक चारि जने मिलि लेन को आये लिये काठ...
भजु मन जीवन नाम बसेरा । टेक सुंदर देह देखि जनि भूली झपट लेत जस बाज...