भजरे मन राम चरण निश दिन सुखदाई ॥ टेक ॥ नरतन यह बार बार जग में...

पूरण प्रॆम लग़ा दिल में जब नेम का बंधन छूट गया ॥ टेक ॥ कोई पंडित...

आशक मस्त फकीर हुया जब क्या दिलगीरपणा मन में ॥ टेक ॥ कोई पूजत फूलन मालन...

प्रीतम प्रीत लगी तुझसे न भुलाना मुझे मिल जाना सही ॥ टेक ॥ तेरे लिये सब...

पूरण ब्रम्ह सनातन तुं महादेव सदा शिव शंकर है ॥ टेक ॥ अंग विभूत बिराज रही...

प्रीत की रीत न जाने सख़ी वो तो नंद को बालक सांवरिया ॥ टेक ॥ जमुनातट...

देखो सख़ी बिंदराबन में वो तो बंसरी शाम बजावत है ॥ टेक ॥ धर्मके पालन कारण...

ऐसी करी गुरुदेव क़ृपा मेरा मोह का बंधन तोड़ दिय़ा ॥ टेक ॥ दौड रहा दिन...

दे दे पिया दर्शन तो मुझे मैं तो शरण तुमारी आय पडी ॥ टेक ॥ मात...

हेरी सखी चल ले चल तुं अब देश पिया का दिखाय मुझे ॥ टेक ॥ ढूंढत...

हेरी सखी बतलाय मुझे पिया के मन भावन कि बतियां ॥ टेक ॥ गुणहीन मलीन शरीर...

विश्वपति जगदीश्वर तुं शरणागत पालन कारण है ॥ टेक ॥ तेरी रची सब है रचना गिरि...