जो जन ध्यान धरे निर्गुण का सो ईश्वर का दर्शन पावे ॥ टेक ॥ जाय एकांत...

जो जन हरि का ध्यान लगावे सो भवसागर पार तरे रे ॥ टेक ॥ हिरदे बीच...

अहो प्रभु काल बडो बलकारी जांको भोजन है नर नारी ॥ टेक ॥ ब्रम्हा रूद्र इंद्रगण...

रे मनुवा क्यों जग में लिपटायो तेरो कोई नहीं है सहायो ॥ टेक ॥ एग संसार...

प्रभु तेरी महिमा परम अपार जांको मिलत नहीं कोई पारा ॥ टेक ॥ सकल जगत को...

प्रभु तेरी महिमा कौन बखाने जाको ब्रम्हादिक नहिं जाने ॥ टेक ॥ तुं सर्वज्ञ चराचर पूरण...

प्रभु तेरी महिमा किस बिध गावूं तेरो अंत कहीं नहीं पाऊँ ॥ टेक ॥ अलख निरंजन...

प्रभु इक नाम तेरा सुखकारी सब दुनियां परम दुखारी ॥ टेक ॥ गर्भ वास में उलटे...

अहो प्रभु अचरज़ माया तुमारी जिसे मोहे सकल नर नारी ॥ टेक ॥ ब्रम्हा मोहे शंकर...

चल चल चल सखी देश हमारे वास करे जहां प्रीतम प्यारे ॥ टेक ॥ बिन घन...

हरि हरि हरि नित नाम सुमरणा भव सागरजल पार उतरना ॥ टेक ॥ बिन हरि सुमरे...

प्रभु प्रभु प्रभु दास तुमारो मुझे न अपने दिल से बिसारो ॥ टेक ॥ भव जलधारा...