पूरण ब्रम्ह सनातन तुं महादेव सदा शिव शंकर है ॥ टेक ॥ अंग विभूत बिराज रही...

प्रीत की रीत न जाने सख़ी वो तो नंद को बालक सांवरिया ॥ टेक ॥ जमुनातट...

देखो सख़ी बिंदराबन में वो तो बंसरी शाम बजावत है ॥ टेक ॥ धर्मके पालन कारण...

मान कही मन मूर्ख तुं अब तो भज नाम निरंजन का ॥ टेक ॥ जून अनेक...

जाग़ मुसाफिर देख ज़रा वो तो कूच की नौबत बाज रही ॥ टेक ॥ सोवत सोवत...

ऐसी करी गुरुदेव क़ृपा मेरा मोह का बंधन तोड़ दिय़ा ॥ टेक ॥ दौड रहा दिन...

आज सखी सतसंगत में मिलके हरि के गुण गान करो ॥ टेक ॥ कलि में हरिनाम...

दे दे पिया दर्शन तो मुझे मैं तो शरण तुमारी आय पडी ॥ टेक ॥ मात...

हेरी सखी चल ले चल तुं अब देश पिया का दिखाय मुझे ॥ टेक ॥ ढूंढत...

हेरी सखी बतलाय मुझे पिया के मन भावन कि बतियां ॥ टेक ॥ गुणहीन मलीन शरीर...

विश्वपति जगदीश्वर तुं शरणागत पालन कारण है ॥ टेक ॥ तेरी रची सब है रचना गिरि...

ध्यान का वादा करके सजन तैने ध्यान लगाना छोड़ दिया ॥ टेक ॥ शीश तले पग...