शुकदेव कहे मुनि ज्ञानी सुन भूप भागवत बानी टेक सुख दुख अरु जीवन मरना सब अपना...
मुनि कपिल कहे सुन माई अब सांख्य ज्ञान मन लाई टेक सत रज तम त्रिगुण समाना...
श्री कृष्ण कहे निरधारा सुन अर्जुन बचन हमारा टेक यह जीव सदा अविनाशी सुखरूप स्वयं परकाशी...
मुनि कहत वासिष्ठ बिचारी सुन राम वचन हितकारी टेक यह झूठा सकल पसारा मृग तृष्णा जलधारा...
रे मनुआ अब तो समझ मेरे भाई तेरो अवसर बीतो जाई टेक लाख करोड़ी माया जोड़ी...
प्रभु तैने कैसो खेल रचायो मैं तो देख देख बिसमायो टेक देव रूप हो स्वर्गलोक में...
प्रभु मेरी नैया को पार उतारो मैं तो डूबत हूं मझधारो टेक भवसागर जल दुस्तर भारी...
ऊधो मुझे संत सदा प्यारे जांकी महिमा वेद उचारे टेक मेरे कारण छोड़ जगत के भोग...
ऊधो तुझे ज्ञानसार समझाऊं तेरे मन का भरम मिटाऊं मैं निरगुन व्यापक सब जग में पूरण...
हरि कैसे बलिघर याचन आये सब जगत के नाथ कहाये बलिराजा रणधीर महाबल इन्द्रादिक डर पाये...
हरि तुम भक्तन के हितकारी अब राखिये लाज ह्मारी प्रहलाद भक्त को हिरणकसप ने कष्ट दिया...
हरि तेरे चरणन की मैं दासी मेरी काटो जनमकेरी फासी टेक ना जाऊं मथुरा ना गोकुल...