Kabir
नहिं मानै मूढ़ गँवार मैं कैसे कहूँ समझाय । टेक झूठे को विश्वास करत है साँचे...
नर तोहि नाच नचावत माया । ज्ञान हेतु कबहुँ नहिं नाचे जा हित पाये काया ।...
नर तैं क्या पुराण पढि कीन्हा । अनपायनी भक्ति नहिं उपजी भूखै दान न दीन्हा ।...
नर तू पार कहँ जैहो । आगे पन्थ पन्थि ना कोई कूच मुकाम न पैहो ।...
नर तुम नाहक धूम मचाये । टेक करि असमान छूवो नहिं काहू पाती फूल चढ़ाये ।...
नर तुम झूठे जनम गमाया । टेक झूठे के घर झूठे आया आया झूठे ते परिचाया...
नर तुम कियो न एको काजा । काम क्रोध तृष्णा के बाँधे लूटत हैं यमराजा ।...
नर तुम काहे को माया जोरी । टेक कौड़ी कौड़ी माया जोरी कीन्हें लक्ष करोरी ।...
नर जानें अमर मेरी काया घर घर बात दुपहरी छाया। टेक मारग छाड़ि कुमारग जोवें आपन...
नर जन्म पाय काह कीन्हा रे । कबहुँ न एक पल सपनेहु मूरख गुरु का नाम...
नर को नहिं परतीत हमारी । झूठा बनिज कियो झूठे सो पूँजी सबन मिलि हारी ।...
न कछु न कछु राम बिना रे । टेक देह धरे की इहै परम गति साध...