जब ते मन परतीत भई। टेक तब ते अवगुन छूटन लागे दिन दिन बाढ़त प्रीति नई।...

जन्म धरि जो न किया सत्संग। ताको केवल पशु करि मानो यदपि मनुष का अंग। टेक...

जनम सब धोखे में खोय दियो। टेक द्वादश वर्ष बालपन बीते बीस में जवान भयो। तीस...

जन को दीनता जब आवै। टेक रहै अधीन दीनता भाषै दुरमति दूरि बहावै। सो पद देवं...

जग सो प्रीति न कीजिये मोहे मन मूरा। स्वाद हेत लिपटा रहै निकसे कोई सूरा ।...

जग में सोइ बैराग कहावे। टेक आसन मारि गगन में बैठे दुर्मति दूर बहावै। १ भूख...

जग में समझ बूझ रहो भाई। टेक यह दुनिया बहु रंग बावरी जहँ तहँ तीर्थ नहाई।...

जग में तुम सम कौन अनारी। चहत बुझावन काम अग्नि को विषय भोग घृत डारी। टेक...

जग में गुरु समान नहिं दाता। वस्तु अगोचर दई मेरे सतगुरु भली चलाई बाटा। टेक काम...

जगत चला जाय यहॉँ कोइ न रहैया। टेक चलि गये कुम्भकरण अरु रावण चलि गये लखन...

जगत औ भेष के पक्ष में ना पड़े रहै निष्पक्ष सोइ जुक्त जोगी। १ फेरि मन...

छका सो थका फिर देह धारैं नहीं करम औ कपट सब दूर कीया। १ जिन स्वाँस...